Friday, December 4, 2009

तुम भी चले गए

आँखों में बस के दिल में समा कर चले गये ख़्वाबिदा ज़िन्दगी थी जगा कर चले गये चेहरे तक आस्तीन वो लाकर चले गये क्या राज़ था कि जिस को छिपाकर चले गये रग-रग में इस तरह वो समा कर चले गये जैसे मुझ ही को मुझसे चुराकर चले गये आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते इक आग सी वो और लगा कर चले गये लब थरथरा के रह गये लेकिन वो ऐ "subhi" जाते हुये निगाह मिलाकर चले गये

No comments:

Post a Comment